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सम्पादकीय झरोखे से
“अभिव्यक्ति”

“स्याही की तासीर का अंदाज देखिये, खुद-ब-खुद बिखरती हैं तो दाग बनाती है, और जब कोई बिखेरता है तो अल्फाज बनाती है |” एक ऐसे कालखंड में जब भौगोलिक सीमाएं सिमटती जा रही हैं और तकनीकी की व्यापकता ने जल-थल के फासलों को पाटकर विश्‍व को एक वैश्विक-ग्राम में परिवर्तित कर दिया है | ऐसी स्थिति में शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक विषयों से सम्बन्धित, कई ज्वलन्त आयामों पर तत्वान्वेषी व शोध-अनुसंधान की आवश्यकता भी दिन-प्रतिदिन उत्तरोत्तर बढ रही है | हमें ऐसा प्रतीत होता है कि मानवीय सम्बन्धों और नैतिकताओं के लिये विचार- विनिमय में हमारी और आपकी भूमिका पारिवारिक सदस्यों के रूप में है | भावनाओं को शब्दों ने ग्रहण किया और शब्दों की इस ग्राहन्य क्षमता ने साहित्य और शोध को जन्म दिया | ऐसे में सोचने-समझने की प्रकिया परस्पर तार्किक हो तो, कभी-कभी हम समस्या और चिंतन के सही मापदण्ड निर्मित करनें के उद्ददेश्य से भी शोध कार्य कर जाते हैं | ऐसे में सम्पूर्ण विश्‍वसमाज के मूल्यों और मान्यताओं को अपने मन-मस्तिष्क में स्थान देना ही मानव-धर्म की सबसे महत्वपूर्ण नैतिकता है |

“सोच से संभावनाओं तक का सफर हौंसलें से होकर गुजरता है |” आपके कर-कमलों में सुशोभित “पँखुड़ी” अन्तर्विषयी शोध-पत्रिका इसी आवश्यकता की पूर्ति की दिशा में एक निरन्तर एवं विनम्र तथा प्रत्यक्ष प्रयास है | यह अपने आप में एक विशिष्ट उपक्रम ही नहीं, अपितु शोध के छेत्र में सम्प्रेषण और प्रसार को गति देने हेतु पारस्परिक सहयोग का साक्षी एवं प्रमाण भी है | शैक्षणिक क्षेत्र में अनुभव एक महानदी की भाँति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है | जिनमें स्वावलम्बन, प्रेम, वीरव्रत, संकल्पशक्ति, अनुशासन, सृजनशीलता, धर्मनिष्ठा जैसे व्यवहार समाहित है | प्रस्तुत अंक में डिजिटल कॉन्शियसनैस, इतिहास, भाषा, मानवीय, मूल्यों, पर्यावरण, शिक्षा आदि विषयों से सम्बन्धित शोध-पत्र शैक्षणिक उपलब्धियों हेतु प्रकाशित किये गये हैं | “पँखुड़ी” शोध-पत्रिका का मुख्य उददेश्य शिक्षा एवं समाज तथा विश्‍वग्राम से सम्बन्धित नवाचारों एवं सरोकारों पर उच्च स्त्तरीय शोध कार्य के प्रति समर्पित रहने का है | हमारे लिये विशेष उत्साह-वर्धन का विषय यह भी है कि “पँखुड़ी” देश-काल की परिधि को लांघकर विश्‍व-विरासत का हिस्सा बनने की आकांक्षी है | इस आकांक्षा को साकार करने हेतु “पँखुड़ी” में विभिन्न विषयों से सम्बन्धित उत्कृष्ट प्रकाशन भी कराना है | हमारे लिये यह एक आहालादकारी अनुभूति है कि दिगम्बर जैन कॉलिज का वरदहस्त संरक्षक के रूप में “पँखुड़ी” पर आशीर्वादस्वरुप है |

“पँखुड़ी” की सम्पादकीय अभिव्यक्ति सम्पादक प्रकोष्ठ के प्रति अपना सबल आभार व्यक्त करती है कि आपने अपने समयानुसार सहयोग एवं सुझावों से शोध-पात्रिका को नया आयाम प्रदान किया | आशा है, हमारी “पँखुड़ी” का प्रकाशन कार्यक्रम समय की अबाध गति की संगिनी के रूप में गतिशील रहेगा | हम सभी आदरणीय एवं श्रेष्ठ लेखक तथा प्रिय पाठकों का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं कि आप अपने अनुभवों की लेखनी बनकर “पँखुड़ी” शोध-पत्रिका के हमसफर रहे हैं | अन्ततोगत्वा सभी शोध-पत्रों का स्वागत करते हुए भविष्य में आप सभी के सुझाव भी सहर्ष स्वीकार्य होंगे |

If we do not challenge ourselves we will never be able to realize what we can become.
Don’t turn around, don’t look back, keep moving forward,
keep pushing, the pot of gold is at the end of the rainbow, not the beginning.
Follow every rainbow, till you find your dream.

So, we should follow 5H’s in life- Happy Healthy, Humble, Honesty and High
Thinking for achieving success.

Prof. Virendra Singh

The great aim of education is not knowledge but action. Education is the most powerful weapon which you can use to change the world. We invite you to take this journey towards excellence and self-fulfillment with Pankhuri an interdisciplinary journal. We assure to develop you into a confident, vibrant and self- reliant individual in every sphere.